prathana arti

जय अग्रसेन हारे, स्वामी जय श्री अग्रसेन हरे |
कोटि-कोटि नत मस्तक, सादर नमन करे |
ओम् जय श्री अग्र हरे ............
आश्विन शुक्ला एकम, नृप वल्लभ जाए | 
स्वामी वल्लभ घर आए ।
अग्रवंश संस्थापक, नागवंश ब्याहे |
ओम् जय श्री अग्र हरे ............
केसरिया ध्वज फहरे, छत्र चंवरधारी | 
स्वामी छत्र चंवरधारी ।
झांझ, ऩफीरी, नौबत बाजत तब द्वारे |
ओम् जय श्री अग्र हरे ............
अग्रोहा राजधानी, इन्द्र शरण आये |
प्रभु इन्द्र शरण आये |
गोत्र अठारह अब तक तेरे गुण गायें ।
ओम् जय श्री अग्र हरे ............
सत्य, अहिंसा पालक, न्याय, नीति, समता |
प्रभु न्याय नीति समता |
इँट रुपये की रीति, प्रकट करे ममता ||
ओम् जय श्री अग्र हरे ............
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर, वर सिंहनी दीन्हा | 
स्वामी वर सिंहनी दीन्हा | 
कुलदेवी महामाया, वैश्य कर्म कीन्हा ||
ओम् जय श्री अग्र हरे ............
अग्रसेन जी की आरती, जो कोई नर गाये | 
स्वामी जो कोई नर गाये | 
कहत त्रिलोक विनय से, इच्छित फल पाये ||
ओम् जय श्री अग्र हरे ............

लक्ष्मीजी की आरती


ऊँ जय लक्ष्मी माता (मैया) जय लक्ष्मी माता |
तुमको निश दिन सेवत, हर विष्णु धाता || ऊँ ||
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता |
सूर्य चन्द्रमा तुमको ध्यावत्, ऋद्धि - सिद्धि धन पाता || ऊँ ||
तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता | 
कर्म - प्रभाव प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता || ऊँ ||
जिस घर में तुम रहती, तहं सब सदगुण आता | 
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबड़ाता || ऊँ || 
तुम बिन यज्ञ न होवे, वस्र न हो पाता | 
ख़ान पान का वैभव, सब तुम से आता || ऊँ ||
शुभ - गुण - मंदिर सुन्दर, क्षीरोदधि - जाता | 
रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नही पाता || ऊँ || 
महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता | 
उर आनन्द, समाता, पाप उतर जाता || ऊँ ||